करुण वंदना
माँ! ये सब चाचू के जैसे ही तो हैँ,
फिर क्यूँ हमें घेरे हैं, धमकाए हैं,
तुम तो कहती थी इनके तरह बनना है,
मगर ये तो अब्दुल्लाह पर भी गोलियां बरसाए हैं ,
माँ ये सब चाचू के जैसे ही तो हैँ,
फिर क्यूँ हमें घेरे हैं धमकाए हैं,
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